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काशी में सजी ब्रह्मतरंगिणी की दिव्य बेला! कृष्णा पाठक के पावन संकल्प से गूंजा महा रुद्राभिषेक का विराट आयोजन


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*श्रावण मास केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण : पंडित ऋषिकेश दुबे*


*रिपोर्टर अरविंद कुमार सिंह*


*वाराणसी।* जिस पुण्यभूमि पर अनादि काल से वेदों की ऋचाएं गूंजती रही हैं, जहां हर श्वास शिवमय है और हर धड़कन ब्रह्मनाद का स्वर रचती है, उस अविनाशी काशी नगरी में अंतर्राष्ट्रीय हिंदू परिषद राष्ट्रीय बजरंग दल काशी प्रांत के सोशल मीडिया प्रमुख एवं केपीपीएन न्यूज़/खबरों पर पैनी नजर (हिंदी दैनिक समाचार पत्र) वाराणसी ब्यूरो चीफ कृष्णा पाठक के द्वारा एक अद्वितीय और विलक्षण महा रुद्राभिषेक का आयोजन संपन्न हुआ। बता दें कि यह आयोजन कोई साधारण कर्मकांड नहीं था:- यह एक आह्वान था ब्रह्मशक्ति का, यह एक समर्पण था। वहीं शिव तत्व की परम सत्ता को संपूर्ण काशी में जब वेदों के गूंजते स्वर, ब्राह्मणों की तेजस्विता, और शंखनाद की दिव्यता एकसाथ मिलकर गूंज उठी: तो ऐसा प्रतीत हुआ मानो स्वयं काशी विश्वनाथ महाराज अपने तेजस्वी रूप में अवतरित होकर कृष्णा पाठक के संकल्प की गूंज को स्वीकार करने हेतु उपस्थित हो गए हों।

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बता दे कि प्रभु का सच्चे भक्त में केवल एक आयोजक नहीं, अपितु एक यज्ञ समर्पित ब्राह्मण आत्मा हैं, जिनके हृदय में राष्ट्रधर्म, सनातन संस्कृति और ब्रह्मविद्या की त्रिवेणी बहती है। उनके भीतर संस्कारों की वह ज्वाला हमेशा रहता है। जो न केवल समाज को जागरूक करती है, अपितु युवा पीढ़ी को अपने मूल की ओर लौटने का मार्ग भी दिखाती है। इस दिव्य आयोजन के पीछे कृष्णा पाठक जी के माता-पिता का तप, आशीर्वाद और कर्मयोग भी उतना ही महत्त्वपूर्ण रहा। एक सच्चे ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर उन्होंने अपने पुत्र को धर्म, दया, सेवा और साधना की ऐसी अमूल्य शिक्षा दी, जिसकी झलक आज पूरे काशी में प्रतिध्वनित हो रही है। माता-पिता की ऐसी पुण्य परंपरा ही है, जो कृष्णा पाठक जैसे यशस्वी और कर्तव्यनिष्ठ सनातन सपूत को जन्म देती है।

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बड़ी बात तो यह है कि कार्यक्रम में दर्जनों श्रद्धालु एकत्रित हुए। और बड़ी-बड़ी कर महादेव का आरती पूजन कर जलाभिषेक किए। यहीं नहीं बता दे की वहां उपस्थित था एक सामूहिक शिवत्व, एक अदृश्य शक्ति जो आत्मा को भीतर तक स्पर्श कर रही थी। शुद्ध जल, पंचामृत, औषधियों और गंगाजल से हुआ महादेव का अभिषेक मानो समस्त समाज की चेतना को जाग्रत कर रहा था। ब्राह्मणों द्वारा वैदिक मंत्रों की गर्जना और पवित्र अग्नि की लपटों में जब कृष्णा पाठक जी ने अपनी श्रद्धा का पूर्णाहुति अर्पण किया, तो काशी की गंगा भी मानो पुलकित हो उठी। यह आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, अपितु सनातन संस्कृति के पुनरुत्थान का महान साक्षात्कार था। कृष्णा पाठक का यह संकल्प, यह कार्य, यह समर्पण एक संदेश है सम्पूर्ण भारतवर्ष के युवाओं के लिए कि जब तक हमारी नसों में वेद बहते रहेंगे, जब तक हमारी आत्मा से ‘हर हर महादेव’ की गर्जना निकलती रहेगी, तब तक भारत एक सनातन राष्ट्र के रूप में अखंड खड़ा रहेगा।यही नहीं बता दें कि महादेव के अभिषेक होने के तत्पश्चात सभी भक्तगणों में प्रसाद भी वितरण किया गया और जिससे सभी भक्तगणों के मन में भगवान के प्रति गहरी श्रद्धा और भक्ति कई गुना बढ़ गया और सभी भक्तगणों ने जोरों शोरों से " हर हर महादेव " का उद्घोष भी किया।

*जय सनातन। जय शिवशक्ति। जय काशी विश्वनाथ।*

 
 
 

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