प्रतिनियुक्ति में पर्दा या प्रपंच? सहकारी बैंक की अधिकारी की ‘संदिग्ध तैनाती’ ने खोली शासन-प्रशासन की परतें!
- Kumar Nandan Pathak
- 9 जून
- 2 मिनट पठन

> "नियम किताबों में रह गए धूल खाते,
> कुर्सियों पर अब जुगाड़ राज चलाते।
> हकदार पंक्ति में खड़े रह गए,
> और ‘सैटिंग’ वाले आगे निकल जाते!"
केपीपीएन विशेष संवाददाता
लखनऊ। राज्य निर्वाचन आयोग और सहकारी ग्राम विकास बैंक के बीच हुआ एक प्रतिनियुक्ति आदेश अब बवाल का विषय बन चुका है। सूत्रों की मानें तो बाराबंकी शाखा की सहायक फील्ड ऑफिसर श्रीमती अनुराधा को ‘अवर वर्ग सहायक’ के पद पर तैनात करना – वो भी बिना वैधानिक प्रावधान, बिना पद सृजन, और बिना नियमानुसार सेवा शर्तों के – एक संगठित ‘प्रशासनिक चूक’ या फिर ‘सुनियोजित सेटिंग’ की ओर संकेत करता है।
विनियम और वित्तीय आदेशों की खुली अनदेखी
वित्त विभाग का 13 अगस्त 1978 का स्पष्ट आदेश है – “सार्वजनिक उपक्रमों से लिपिक पदों पर प्रतिनियुक्ति नहीं की जा सकती।” 2015 की सेवा नियमावली में भी अवर वर्ग सहायक के लिए प्रतिनियुक्ति का कोई स्थान नहीं। फिर किस आधार पर श्रीमती अनुराधा को चुनाव आयोग में तैनात किया गया?
चिठ्ठियों की चतुराई या प्रशासनिक मिलीभगत?
29 जुलाई 2022 से लेकर फरवरी 2023 तक आयोग और बैंक के बीच कई बार पत्राचार हुआ – अनुरोध, स्मरण, और कार्यमुक्ति का दबाव। 2021 में जब इसी अनुरोध को नियमविहीन कहकर नकारा गया था, तो अब उसे कैसे वैधता मिल गई?
वेतन भुगतान में भी गड़बड़ी की बू?
बैंक से रूपए 11,440 मूल वेतन और रूपए 2800 ग्रेड वेतन प्राप्त कर रही अधिकारी को चुनाव आयोग में प्रतिनियुक्त कर देने पर अतिरिक्त भत्ते या बढ़े हुए वेतन की संभावना की भी जाँच होनी चाहिए। क्योंकि नियमानुसार, ऐसे मामलों में प्रतिनियुक्ति भत्ता अनुमन्य नहीं है।
सचिव सुनील कुमार श्रीवास्तव की भूमिका संदेह के घेरे में
इस आदेश की संस्तुति से लेकर वेतन आहरण तक, सचिव श्रीवास्तव की प्रशासनिक जिम्मेदारी बनती है। नियमों को जान-बूझकर नजरअंदाज कर वेतन भुगतान की अनुमति कैसे दी गई? यह सवाल आज नहीं तो कल जवाब माँगेगा।
हकदारों के हक पर चोट!
सभी जानते हैं कि अवर वर्ग सहायक के पद पर सीधी भर्ती के लिए चयन आयोग के माध्यम से आवेदन होते हैं। ऐसे में जब बिना परीक्षा, बिना विज्ञापन, बिना आरक्षण व्यवस्था के किसी को प्रतिनियुक्ति से नियुक्त किया जाए, तो यह योग्य बेरोजगार युवाओं के अधिकारों का सीधा हनन है।
> "लिपिक की कुर्सी पर बैठी है सेटिंग की छाया,
> बेरोजगारों के हक़ की उड़ती जा रही काया।
> शासन अगर चुप रहा, तो यह खेल गहराएगा,
> और ‘न्याय’ फाइलों के नीचे फिर कहीं खो जाएगा।"
जनहित में माँग, उच्चस्तरीय जाँच आवश्यक
इस संदिग्ध प्रतिनियुक्ति की निष्पक्ष जाँच केवल एक पद की बात नहीं है – यह पूरे सिस्टम की पारदर्शिता का प्रश्न है। शासन को चाहिए कि इस मामले में न्यायिक या प्रशासनिक जाँच बैठाए, ताकि दोषियों की जवाबदेही तय हो सके।








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